Friday, July 24, 2009

पता नहीं;ये चादर किसी के काम आ जाए !

जी चाहता है
जी चाहता है
कि जीवन का हर क्षण जी लूँ
और वह भी ऐसा जियूँ
कि जीवन का हर क्षण
सार्थक हो जाए
मुझसे किसी की
कोई शिकायत न रह जाए
*
जी चाहता है
कि जीवन का हर घूँट पी लूँ
और वह भी ऐसा पियूँ
कि हर घूँट ख़ुद तृप्त हो जाए
बस सारी तिश्नगी मिट जाए
*
जी चाहता है
कि जीवन की फटी चादर सी लूँ
और वह भी ऐसी सियूँ
कि उसका तार-तार चमके
उसकी हर किनार दमके
उसके बूटों में ख़ुशबू सी भर जाए
पता नहीं, यह चादर किसी के काम आ जाए !

5 comments:

  1. लाजवाब रचना..शब्द शब्द दिल पर असर करती हुई....बहुत अच्चा लिखते हैं आप...बधाई
    नीरज

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  2. जी चाहता है
    कि वर्षों बाद एक बार फिर आपसे मिलूँ.
    और वह भी ऐसा मिलूँ कि
    यादों के एक-एक तार मिला लूं.
    तारों का हरेक सुर बजता रहे फिर यूं ही,
    पता नहीं, किस धड़कन के काम आ जाए....

    सर! ब्लॉगर बनने के लिए बधाई. मैं भूपेश गुप्ता, ओटीजी चैनल का सिपहसालार. समय मिले तो मेरा ब्लॉग "वजूद" भी एक बार पढियेगा. मैं बहुत ज़्यादा ब्लोगिंग के बारे में जानता नहीं. फिलहाल सीख ही रहा हूँ.

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  3. papaji ka blog dekhkar badi khushi hui. ummed karta hu ki bahut kuch sunder padne ko milega.

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  4. २४ जुलाई के बाद कुछ लिखा नहीं सर जी

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