Sunday, September 5, 2010

ध्यान से सुनना भी एक साधना है


जैसे देखकर भी लोग अनदेखा कर देते हैं, वैसे ही सुना अनसुना भी कर देते हैं । कान सुनने के यंत्र हैं । किन्तु, जब कान से सुनी बात मन अनसुनी कर दे तो मन में शब्द का अर्थ दर्ज़ नहीं होता । वह अनसुना हो जाता है । परिणाम में धारणा सुनसान हो जाती है । तब, योग्य सुना हुआ शब्द भी अर्थ खो देता है और वह व्यर्थ हो जाता है। यह अनसुनापन समर्थ को व्यर्थ और व्यर्थ को समर्थ बना देता है ।

दरअसल, जब ध्यान से सुना शब्द अर्थ लेता है तभी वह सार्थक होता है । शब्द पक्का बनकर हरकत में आता है और मन के आदेश में आकर तन की इन्द्रियों से क्रिया करवाता है । जब तक कानों में पड़ा शब्द मन स्वीकार नहीं करता, तन हरकत नहीं करता । अनसुना करने की लगातार क्रिया मनन शक्ति को बोथरा कर देती है । आप बहरे के पास ढोल बजाओ, उसे सुनाई नहीं देगा, किन्तु सुनने वाले ने जब अनसुना कर दिया तो आपके शब्द का बजा ढोल किस काम का ?

पता नहीं मतलब की बात भी लोग अनसुनी क्यों कर देते हैं ? बेमतलब की बात को क्यों सुनते हैं ? होना तो यह चाहिए कि वह सब सुना जाए और किया जाए जो काम का हो । काम इसीलिए बिगड़ता है कि हमने उसे करने से पहले सुना नहीं ।

हमारे यहॉं बच्चे के जनम पर थाली बजाई जाती है । घर की माताएँ-बहनें नवजात शिशु की आँखों में हर्षित होकर उसकी सुखकारी मुद्राएँ क्यों देखती हैं ? इसीलिए कि बच्चा सुनता है या नहीं । अर्थात्‌ सुनने का अभ्यास जन्म से कराने के पीछे यही भाव है कि वह ताज़िंदगी अच्छा और सार्थक सुनता रहे । जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है; गाय-बैलों की घंटियों, मॉं-बहनों की चूड़ियों की खनक, दादियों-नानियों की लोरियों के स्वर उसके कानों में रस घोलते हैं । और, यहीं से अंकुरित होती है बेहतर और सार्थक सुनने की भावना । किशोरावस्था में यह सुनने की भावना पक्की होती है और आदमी रस पिपासु बनता है। चौपालों के लोकगीत, मन्दिरों के गीत, भजन, गुरुजनों, शिक्षकों की सीख आख़िर हमें क्या देती है ? अच्छी बातों को सुनने की आतुरता! उन्हें धारण कर ही तो विकार मिटते हैं । नर से नारायण बनने की प्रक्रिया है यह । सुनने, मनन करने, धारण करने और संकल्पित भाव से क्रियाशील बनने की ही तो कोशिश है यह। सच तो यह है कि श्रद्धा से सुना शब्द ही धारण होता है । अच्छी बात सुनने के लिए कान सदा खुले रखो । "सुनो सब की, पर करो मन की' इस कहावत का अर्थ कभी नकारात्मक मत लो । सही सुना हुआ शब्द मन को भायेगा ही । जिस बात में सबका भला हो उसकी कभी अनसुनी मत करो । जिस बात से सबका कल्याण हो, ज़रूर सुनो ।

2 comments:

  1. बहुत ही काम की जानकारी।

    ReplyDelete
  2. ..श्रद्धा से सुना शब्द ही धारण होता है ..
    ..सुंदर आलेख। कमाल का दर्शन।

    ReplyDelete